कोर्ट के ही क्लास थर्ड और क्लास फोर्थ के कर्मचारियों के प्राविडेंट फंड से ७ करोड़ रु जजों ने गायब करवा दिए और उस पैसे से लैपटॉप ,टी०वी० ,ए० सी० ,जेवर जैसे आसाइश के सामानों के तोहफे जजों के रिश्तेदारों और करीबियों को दिए गए । सेन्ट्रल नाजिर आशुतोष आस्थाना की मदद से जजों ने इस घोटाले को अंजाम दिया । जब सी०बी०आई ने जांच शुरू की तो आशुतोष को ही जेल में डाल दिया ,जजों को केवल चिन्हित किया गया ,अब सबूत जुटाना बाक़ी था जजों के ख़िलाफ़ । जो आशुतोष के बयान से ही संभव था , उसे धमकिया मिलने लगी । बयान बदलने का दबाव पडा । घर -परिवार के साथ जजों ने जो -जो न करवाया हो ,फिलहाल उसका उल्लेख अखबारों में आया ही नहीं । अब आप ही बताएं जजों की इज्जत और नौकरी ज्यादा कीमती है कि एक मामूली से नाजिर की जान और परिवार । और जब भ्रष्ट जज एकजुट हो जाएँ तो किस जेलर की हैसियत है कि उनके ख़िलाफ़ जाकर किसी बंदी की सुरक्षा करे,बल्कि जेलर तो अपने हाथ से उसको जहर खिला देगा । अब आशुतोष की मौत ठीक दिवाली के दिन कैसे हो गयी इसका खुलासा तो पोस्टमार्टम की रिपोर्ट ही करेगी । पर इसकी क्या गारंटी है किपोस्टमार्टम करने वाले डाक्टर को आरोपित जज साहब लोग नहीं खरीद लेंगे?वो भी एक-दो नहीं पूरे छत्तीस जज । वो भी जिला न्यायालय के नहीं उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय के ।
हमें तो अब सी०बी आई० की जज रमा जैन की चिंता लग गयी है ,जिनसे इस मामले की शुरुआती शिकायत की गयी थी। ऊपर वाला उनको इन जजों की हर बला से महफूज रखे ।
किंतु हमारी चिंता अपनी जगह कायम है ,यही मजबूत न्यायपालिका है ? हमें जवाब मांगना चाहिए हिन्दुस्तान की सरकार से । आइये आवाज उठाएं .......